क़दम लड़खड़ाते हैं , नज़रें सरसराती है
आँखें जब में उठाऊँ तोह तुम्हारी ही एक धुंदली तस्वीर नज़र आती हैं
सूखे पत्तों सी खनकती तुम्हारी आवाज़ मुझे इस क़दर झिंझोर देती है मानो कहीं दूर हस्तिनापुर से द्रौपदी की बेबस चीख।
रात के अँधेरे में अपने आप को समेटती,ग़मगीन आँखों से धुल में सनी राह ताकती कभी मुस्कुरा देती हूँ तोह कभी सितारों के बीच तुम्हें खोजती हूँ।
उम्मीद लगाती हूँ कि तुम्हारी आँखे शायद मुझे ढूँढे , तुम्हें न सही पर तुम्हारे दिल को मेरा इंतज़ार हो,
शायद तुम ना बोलो पर तुम्हारी रूह में बसी मेरी मोहब्बत मुझे खोज निकाले ,तुम्हारे करीब ला दे।
ऐसी ही कई पहेलियों में मैं उलझी पड़ी हूँ, जब बैठती हूँ सुलझाने तोह और भी उलझ जाती हूँ ,
सोचतीं हूँ शायद जिंदगी कोइ तोह एक पैग़ाम भेज़ दें ,या तोह मेरी ख़ुशी का बसेरा मुझे देदे या फिर इस जिंदगी से परे एक सितारे सी चमकने की हैसियत।
कहीं तोह मेरे\दिल को मिलेगा\एक पूर्णविराम -इस ज़िन्दगी से और मेरी अनकही नदारद मोहबत से.………