वोह मुस्कराहट ....आँखों में बंद और होटो में मंद है
उस रात धीरे से कहीं कुछ खनका,सर्द हवा सी चली.... आसमा मैं कुछ कशमकश सी हुई मैंने घबराकर आसमा को देखा.....ऐसा लगा "मानो काले बदरा मैं कहीं चाँद निकल आया हो ...
" कुछ काली घटाँओ को हटाता हुआ मेरी और चला आ रहा था...... कुछ तोह बात थी.....नहीं तोह चाँद अपनी रोशनी मेरे ऊपर क्यों निछावर करता........अमूमन बात कुछ समझ में नहीं आई .......
पर आज जब पलट के देखती हूँ तोह उस बदरा और चाँद की चाल साफ़ दिखाई पड़ती है!!!
वोह एक इशारा था मेरी कमियों पे....एक इम्तिहान था मेरी उलझी जिंदगी का.....
चाँद ने कहा जीना चाहती हो तोह ज़िन्दगी को थाम लो, जिंदगी उम्मीद लिए तुम्हारे आसपास है कही.....कदम बढाओ,और फिर................ दिल ने कही रुकना सिखा है...हम चल दिए कुछ पाने कुछ ढूँढने के लिए...
एक अनजान पगडण्डी पे ....
चंचल मन अनजान कुछ न समझा..... चल पड़ा उस मुस्कराहट के पीछे.....डगर डगर नगर नगर...
खोज निकाला तुम्हे.. ढून्ढ भी लिया तुम्हे..... मुस्कराहट को मन के सांचे में ढाल भी दिया...
पिरो ली एक एक घडी उम्मीद के धांगो में........
पर समय अपनी रफ़्तार आगे बड़ा......और रह गयी मेरे हाँथ में उम्मीद की वोह लम्बी डोरी...