
आधी रात मैं चाँद ने मुँह उठा कर कहा...चलो अब सो भी जाओ
बहुत हो गई बातें बहुत हूँ गई चर्चाये....मनुष्य हो मनुष्ये का जीवन जीना सीखो.
मन तो चंचल है लेकिन...क्या तुम उसके अधीन होना चाहते हो
मैंने सोच के चंदा मामा से बोलो....आप को कुछ काम नहीं है क्या....घड़ी घड़ी चले आते हो नसीहत देने..............
आप अकेले हो इसलिए आप के जीवन मैं कोई कच्च्त नहीं हैं ............मैं यहाँ मनुष्यों के बीच रहता हूँ..फरक तो पड़ेगा॥
Chanda मामा सोच के बोले.......ऐ मनुष्य....बात अकेले की या भीड़ मैं रहने की नहीं है...जरा झाँक के देख अपने अन्दर और बता की अगर तू आज स्वर्ग मैं होता तो समय रहते इसे भी दूषित कर देता...
और शायद इसलिए मैं हर रात धरती पे चला आता हूँ तुम जैसे निशाचरों को समझाने की रात का मज़ा लेना जरूरी है लेकिन प्रकृति के खिलाफ जाना ग़लत है
चलो अब सो भी जाओ... अब मैं चला!!
कहा की ओर !!!!
बस कुछ और निशाचरों को समझाने की चाँद अपनी चाँदनी तोह बिखेरता रहेगा लेकिन प्रकृति के नियम के हिसाब से सोना भी जरूरी है।
हर काम समय पे भावे अन्यथा जीवन उलटपुलट हो जावे!!!!